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पंचतंत्र-कथा:
मूर्ख को सीख


एक जंगल में एक पेड़ पर गौरैया का घोंसला था। एक दिन कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। ठंड से कांपते हुए तीन-चार बंदरो ने उसी पेड़ के नीचे आश्रय लिया। एक बंदर बोला, “कहीं से आग तापने को मिले तो ठंड दूर हो सकती हैं।”

दूसरे बंदर ने सुझाया, “देखो, यहां कितनी सूखी पत्तियां गिरी पडी हैं। इन्हें इकट्ठा कर हम ढेर लगाते हैं और फिर उसे सुलगाने का उपाय सोचते हैं।”

बंदरों ने सूखी पत्तियों का ढेर बनाया और फिर गोल दायरे में बैठकर सोचने लगे कि ढेर को कैसे सुलगाया जाए। तभी एक बंदर की नजर दूर हवा में उड़ते एक जुगनू पर पड़ी और वह उछल पड़ा। उधर ही दौड़ता हुआ चिल्लाने लगा, “देखो, हवा में चिंगारी उड़ रही हैं। इसे पकड़कर ढेर के नीचे रखकर फूंक मारने से आग सुलग जाएगी।”

“हां हां!” कहते हुए बाकी बंदर भी उधर दौड़ने लगे। पेड़ पर अपने घोंसले में बैठी गौरैया यह सब देख रही थी। उससे चुप नहीं रहा गया। वह बोली, “बंदर भाइयो, यह चिंगारी नहीं हैं यह तो जुगनू हैं।”

एक बंदर क्रोध से गौरैया को देखकर गुर्राया, “मूर्ख चिड़िया, चुपचाप घोंसले में दुबकी रह। हमें सिखाने चली हैं।”

इस बीच एक बंदर उछलकर जुगनू को अपनी हथेलियों के बीच कटोरा बनाकर कैद करने में सफल हो गया। जुगनू को ढेर के नीचे रख दिया गया और सारे बंदर लगे चारों ओर से ढेर में फूंक मारने।

गौरैया ने सलाह दी, “भाइयो! आप लोग गलती कर रहें हैं। जुगनू से आग नहीं सुलगेगी। दो पत्थरों को टकराकर उससे चिंगारी पैदा करके आग सुलगाइए।”

बंदरों ने गौरैया को घूरा। आग नहीं सुलगी तो गौरैया फिर बोल उठी, “भाइयो! आप मेरी सलाह मानिए, कम से कम दो सूखी लकडियों को आपस में रगड़कर देखिए।”

सारे बंदर आग न सुलगा पाने के कारण खीजे हुए थे। एक बंदर क्रोध से भरकर आगे बढ़ा और उसने गौरैया पकडकर जोर से पेड़ के तने पर मारा। गौरैया फड़फड़ाती हुई नीचे गिरी और मर गई।


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