Old school Easter eggs.

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सितमगर के सामने
• फैज बस्तवी

हम युं खड़े हैँ आज सितमगर के सामने,
जैसे हो कोई आईना पत्थर के सामने।
मैँ इस उम्मीद मेँ था कि कोई बुझायेगी मौज,
घर मेँरा जल रहा था समन्दर के सामने।
बावफा कहो कि मुझे बेवफा कहो,
मजबूर हो गया हूं मुकद्दर के सामने।
तेरी एनायतोँ ने किया मेरा एहतराम,
जब सर झुका है तब से तेरे दर के सामने।
वह बहरुपिया है या कोई आदमी ‘फैज’,
आता है रोज भेष बदल करके सामने।

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कविताएं/गजलेँ | घर

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