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अपना बना ले मुझको
• इमरान अली खान ‘साहिल’

अपने हाथोँ की लकीरोँ मेँ सजा ले मुझको,
मैँ हूं जब तेरा तो फिर अपना बना ले मुझको।
मैँ जो कांटा हूं तो चल मुझसे बचाकर दामन,
मैँ हूं गर फूल तो अपने जूड़े मेँ सजा ले मुझको।
तर्क-ए-उल्फत की कसम भी होती है कोई कसम,
तूं कभी याद तो कर भूलने वाले मुझको।
मैँ समंदर भी हूं मोती भी भी हूं और गौताजन भी,
कोई भी मेरा नाम ले के बुला ले मुझको।
बादा फिर बादा है मैँ जहर भी पी जाऊं ‘साहिल’,
शर्त ये है कोई बांहो मेँ संभाले मुझको।

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कविताएं/गजलेँ | घर

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