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बैँगन का भुर्ता
• अजीम खान


किसी समय आज के नाइजीरिया की राजधानी कहलाने वाले नगर लागोस पर ओकापी नामक आदिवासी राजा का शासन था। ओकापी बहुत वीर और बलशाली राजा था। उसने छोटे-छोटे कबीलोँ को मिलाकर अपना राज्य स्थापित किया था।

लेकिन ओकापी के राजा बनते ही उसके इर्द-गिर्द खुशामदी लोगोँ की भीड़ एकत्र होने लगी। वे बात-बात पर राजा की तारीफ करते थे। ओकापी को यह सब बुरा लगता था। वह वीर प्रवृत्ति का व्यक्ति था। उसे इस प्रकार की चाटुकारिता तथा खुशामद से सख्त नफरत थी। लेकिन उसके मना करने के बावजूद वे लोग अपनी आदत से बाज नहीँ आते थे। चाहकर भी ओकापी उनके साथ सख्ती नहीँ कर पाता था किन्तु उनकी चाटुकारिता से वह परेशान भी बहुत था।

राजा जब अधिक परेशान हो गया तो एक दिन उसने अपने गुरु के पास जाकर परामर्श करने का निश्चय किया। वह किसी तरह उन खुशामदी लोगोँ से छुटकारा पाना चाहता था। पर छुटकारा पाने के लिए यह जानना बहुत जरुरी था कि कौन-कौन खुशामदी हैँ? ऐसे लोगो का पता लगाने का उपाय राजा ओकापी की समझ मेँ नहीँ आ रहा था। इसीलिए उसने गुरु की शरण मेँ जाने का निश्चय किया था। उसका गुरु दूर एक जंगल मेँ कुटिया बनाकर रहता था। ओकापी ने उसके पास जाकर अपनी मनोव्यथा कह सुनाई। गुरु बोला, "सुनो, मैँ तुम्हेँ खुशामदी लोगोँ से छुटकारा पाने का एक आसान-सा उपाय बताता हूं। मेरी बात ध्यान से सुनना।"

तत्पश्चात गुरु ने उसके कान मेँ कुछ कहा। गुरु की बात सुन ओकापी की खुशी का ठिकाना न रहा। उसने गुरु को प्रणाम किया और अपने किले मेँ लौट आया।

दूसरे दिन सवेरे उसने नाश्ते मेँ बैँगन का भुर्ता बनाने का आदेश दिया। रसोइये ने बड़ी लगन से बैँगन का भुर्ता बनाया और नाश्ते के समय राजा के सम्मुख पेश कर दिया। भुर्ता सचमुच स्वादिष्ट था। राजा चाव से खाने लगा और खाते वक्त बीच-बीच मेँ तारीफ भी करता जाता।


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