नाश्ते के कक्ष मेँ राजा के दरबार के कई खुशामदी लोग भी मौजूद थे। उन्होने जब ओकापी को भुर्ते की तारीफ करते देखा तो भला वे क्योँ चुप रहते। वे सब भी हां-मेँ-हां मिलाने लगे।
"हां, वीर सरदार! बैँगन का भुर्ता बड़ा स्वादिष्ट होता है। इसके खाने से शरीर अधिक बलशाली होता है।" एक दरबारी बैँगन की प्रशंसा के पुल बांधता हुआ बोला।
ओकापी ने सुना तो उसके होंठो पर मुस्कान थिरक आई। वह जोर-जोर से खिलखिलाकर हंसने लगा। अन्य खुशामदियोँ ने राजा को हंसते देखा तो उनसे भी न रहा गया। वे भी जोर-जोर से हंसने लगे। ओकापी ने नाश्ता खत्म कर लिया और आराम से बैठ गया।
अभी कुछ ही समय गुजरा था कि राजा पेट पर हाथ फेरते हुए दर्द से कराहने लगा। खुशामदियोँ ने अवसर अनुकूल पाया। वे जरा पास खिसक आए और सहानुभूतिपूर्वक पूछने लगे, "हे सरदार! आपको अचानक क्या हो गया?"
ओकापी बोला, "लगता है, बैंगन का भुर्ता खाने से पेट मेँ दर्द हो गया है।"
एक खुशामदी तुरन्त बोला, "बैँगन का भुर्ता कभी नहीँ खाना चाहिए। यह बादी करता है।"
दूसरा बोला, "मैँ तो वीर सरदार को सुझाव दुंगा कि बैँगन की खेती पर ही पाबन्दी लगा दी जाए।"
तीसरा भला कहां चूकने वाला था। वह बोला, "हां, बैँगन एक निकृष्ट सब्जी है।"
ओकापी का चेहरा क्रोध से लाल हो गया। वह चीखकर बोला, "खामोश! अभी थोड़ी देर पहले तो तुम सब बैंगन की तारीफ करते नहीँ थक रहे थे, अब बुराई शुरु कर दी!"
खुशामदियोँ के चेहरे उतर गए। वे नजरेँ चुराने लगे। एक ने साहस करके कहा, "सरदार हम तो आपके मन को देखकर बातेँ करते हैँ।"
दूसरा बोला, "आपको खुश रखना ही तो हमारा परम कर्तव्य है।"
तीसरा बोला, "हम आपकी बात कैसे काट सकते हैँ।"